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30) कोरोना और मैं ( दुबई डायरी )( यादों के झरोके से )



शीर्षक = कोरोना और मैं



2020 एक ऐसा साल जिसे सब अन्य नामों से जानते है कोई लॉकडाउन वाला साल कहता है तो कोई महामारी वाला साल कहता है , हम भी इसे इन्ही नामों से पुकारते है  कोई ज्यादा अच्छा साल तो नही गुज़रा था 2020 लेकिन फिर भी अल्लाह का बहुत बहुत शुक्र था की हमारा परिवार और हम और हमारे अज़ीज़ सब इस महामारी से बच निकले और उन लोगो के लिए दुख भी है जिनके पूरे परिवार इस महामारी की चपेट में आकर इस दुनिया से चले गए उन्हें अकेला छोड़ कर


अपने शहरों और अपने देश में रह रहे लोगो के लिए लॉकडाउन एक अच्छा समय था अपने परिवार वालों के साथ समय बिताने का लेकिन जो लोग परदेस या फिर अन्य शहरों में थे  अपने परिवार वालों से दूर उनके लिए वो समय एक क़यामत की घड़ी जैसा था

जिसमे पल भर में कुछ भी हो सकता था,हम सब की दुनिया रुक सी गयी थी , घर तो घर मंदिर, मस्जिद, चर्च गुरुदुआरे सब पर ताला सा लग गया था 


मैं जो हर हफ्ते छुट्टी होने पर अपने भाई और दोस्तों से मिलने दौड़ा चला आता था की छुट्टी उनके साथ बिताएंगे , हसीं ख़ुशी  कभी सोचा नही था की उन सब से दूर रहना पड़ सकता है 


जब यहाँ यूनाइटेड अरब एमारात में लॉकडाउन की घोषड़ा हुयी तब मैं अपने भाइयो और दोस्तों से दूर दुसरे सूबे में रह रहा था जहाँ से मैं उनसे मिलने हर ब्रास्पतिवार को जाया करता था और शुक्रवार की छुट्टी उनके साथ बिता कर वापस आ जाता था 


लेकिन जैसे ही ये कोरोना महामारी ने अपने पैर पैसारे वैसे ही सब कुछ बंद होता चला गया उसी के साथ बस, गाड़ी, ऑफिस, दुकान सब बंद हो गया और सब घर में कैद हो गए 


चारों और सन्नाटा ही सन्नाटा पसरा हुआ था , दूर तक सिर्फ पुलिस के अलावा कोई नज़र नही आता था , कही कही पुलिस लोगो को खाना बाँट रही थी  तो किसी बिल्डिंग के पास एम्बुलेंस खड़ी नज़र आ रही थी 


हम तो हम वही हिंदुस्तान में हमारे घर वाले भी बंद थे , लेकिन शुक्र था की नेट के माध्यम से हम सब बात कर पा रहे थे  सब का यही कहना था की लॉकडाउन खुलते ही घर चले आना  और अपना ख्याल रखना बाहर तो बिलकुल भी मत निकलना 


सब एक दुसरे को दिलासा दे रहे थे ,  कोई नही जानता की कब क्या हो जाए जिस तरह चारों तरफ का माहौल था और ऊपर से टिक टोक और अन्य जगहों पर अजीब अजीब सी चीज़े वायरल हो रही थी जिन्हे देख दिल और डर रहा था 


मैं जो हर हफ्ते दौड़ता हुआ अपने दोस्तों और भाइयो के पास जाता उनसे एक महीना दूर रहा, रमजान का पूरा महीना बिना उनके साथ के गुज़ार दिया और फिर ईद पर उनसे मिलने गया  उन सब को सही सलामत देख अच्छा लगा 


कसम से वो 2020 जैसा साल कभी भी किसी की जिंदगी में ना आये  शायद ही किसी की अच्छी यादें जुडी होंगी उस साल से लेकिन फिर भी हम सब को अपने अपने ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए की उसने हमें उस मुश्किल घड़ी से निकाल दिया जहाँ चारों और मौत का मंजर था  बाहर कोरोना और घर के अंदर भूख दोनों ही महामारी के बीच बेचारा माध्यम वर्ग का आदमी फसा हुआ था , ये कोई ऐसा याद गार लम्हा नही था  जिसे जिया जाता उस के तो बस जाने का इंतज़ार था  और दुआ है की कभी भी ऐसा साल ना आये किसी की भी जिंदगी में जब अपनों को खोने से ज्यादा दुख एक बार उन्हें देखने उन्हें सीने से लगाने का हो

और कुछ नही कहना चाहूंगा बस खुदा का शुक्र अदा करूंगा की उसने हमें उस मुश्किल घड़ी से बा आसानी निकाल दिया




यादों के झरोखे से 

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2 Comments

Gunjan Kamal

17-Dec-2022 09:00 PM

शानदार

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Sachin dev

15-Dec-2022 06:13 PM

Amazing

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